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Tuesday, November 2, 2010

पंकज जी द्वारा लिखित

छोड़ दी जिसने तरी मँझ-धार में

क्यों डरे वह तट मिले या ना मिले!

चल चुका जो विहँस कर तूफान में

क्यों डरे वह पथ मिले या ना मिले।

है कठिन पाना नहीं मंजिल, मगर

मुस्कुराते पंथ तय करना कठिन!

रोंद कर चलना वरन होता सरल

कंटकों को चुमना पर है कठिन।

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