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Tuesday, November 2, 2010
बुद्धिनाथ झा
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये ||
लीजिये हमको शरण में हम सदाचारी बनें |
ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वीर व्रतधारी बनें ||१
सत्य बोलें झूठ त्यागें मेल आपस में करें |
दिव्य जीवन हो हमारा यश तेरा गाया करें ||२
जाये हमारी आयु हे प्रभु ! लोक के उपकार में |
हाथ ड़ालें हम कभी न भूलकर अपकार में ||३
कीजिये हम पर कृपा ऐसी हे परमात्मा !
मोह मद मत्सर रहित होवे हमारी आत्मा ||४
प्रेम से हम गुरुजनों की नित्य ही सेवा करें |
प्रेम से हम संस्कृति की नित्य ही सेवा करें ||५
योगविद्या ब्रह्मविद्या हो अधिक प्यारी हमें |
ब्रह्मनिष्ठा प्राप्त करके सर्वहितकारी बनें ||६
हे प्रभु…
बहुत है दर्द होता हृदय में साथी!
कि जब नित देखता हूं सामने -
कौड़ियों के मोल पर सम्मान बिकता है -
कौड़ियों के मोल पर इन्सान बिकता है!
किन्तु, कितनी बेखबर यह हो गयी दुनियां
कि इस पर आज भी परदा दिये जाती!
लेकिन इतनी आसानी से पंकज जी की उद्दाम आशा मुरझाने वाली नहीं थी, क्योंकि — -
छोड़ दी जिसने तरी मँझ-धार में
क्यों डरे वह तट मिले या ना मिले!
चल चुका जो विहँस कर तूफान में
क्यों डरे वह पथ मिले या ना मिले।
है कठिन पाना नहीं मंजिल, मगर
मुस्कुराते पंथ तय करना कठिन!
रोंद कर चलना वरन होता सरल
कंटकों को चुमना पर है कठिन।
बुद्धिनाथ झा
मत कहो कि तुम दुर्बल हो
मत कहो कि तुम निर्बल हो
तुम में अजेय पौरूष है
तुम काल-जयी अभिमानी।
रोकने से रूक सकेंगे
क्या कभी गति-मय चरण।
कब तलक है रोक सकते
सिंधु को शत आवरण।
जो क्षितिज के छोर को है
एक पग में नाप लेता।
क्षुद्र लघु प्राचीर उसको
भला कैसे बांध सकता।
क्या कभी गति-मय चरण।
कब तलक है रोक सकते
सिंधु को शत आवरण।
जो क्षितिज के छोर को है
एक पग में नाप लेता।
क्षुद्र लघु प्राचीर उसको
भला कैसे बांध सकता।
पंकज जी द्वारा लिखित
गुलगुले पर्यंक पर हम लेट क्या सुख पाएंगे
भूमि पर कुश की चटाई को बिछा सो जाएंगे।
एक छोटी सी दियरी से जब रोशनी का काम हो
क्या करेंगे लैम्प ले जब एक ही परिणाम हो।
पंकज जी द्वारा लिखित
छोड़ दी जिसने तरी मँझ-धार में
क्यों डरे वह तट मिले या ना मिले!
चल चुका जो विहँस कर तूफान में
क्यों डरे वह पथ मिले या ना मिले।
है कठिन पाना नहीं मंजिल, मगर
मुस्कुराते पंथ तय करना कठिन!
रोंद कर चलना वरन होता सरल
कंटकों को चुमना पर है कठिन।